1000+ dil को छु लेने वाली दो लाइन Short Shayari हिंदी मे .दो लाइन सैड Shayari, स्टेट्स Hindi me .do Line Shayari.
2 लाइन शायरी आपके दोस्तों, बॉय फ्रेंड, पत्नी, पति और गर्ल फ्रेंड या किसी दोस्त को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हिंदी शायरी उर्दू शायरी, अंग्रेजी शायरी सबसे अच्छी है। वर्तमान आधुनिक समय में लोगों के पास का समय नहीं है। या तो वे ज्यादातर शायरी पसंद करते हैं और यही कारण है कि हम हर समय 2 लाइन शायरी को पसंद करते हैं जो आसानी से समझने योग्य शब्दों के साथ हिंदी अंग्रेजी और अरबी भाषा में उपयोग करते हैं।
पुराने समय में मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी की नवीनतम दिन दो लाइन शायरी की तुलना के साथ जो प्यार और रोमांस के लिए है, शुभकामनाएँ, बेवफ़ाई प्यार मुहब्बत की शायरी दिल को छूने वाली शायरी दिल को तोड़ने वाली शायरी पढ़ने में आसान हैं और साथ ही मन पर सुपर फास्ट उनकी भावना का प्रभाव डालती हैं। यह ऑल टाइम एवरग्रीन 2 लाइन लवली सैड शायरी है।
चमन वालो हक़ीक़त हम से बतलाई नहीं जाती
गुलों के दिल पे जो बीती वो समझाई नहीं जाती
वफ़ा के लुत्फ़ मोहब्बत के ख़्वाब माँगे है
अजीब बात है साक़ी शराब माँगे है
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए😆
और जिसे भी चाहिए खैरात में मेरी आवाज,,
वो पहले मेरी खामोशी का एहतराम करे ।।
ये वहम जाने मेरे दिल से क्यूँ निकल नहीं रहा
कि उस का भी मेरी तरह से जी सँभल नहीं रहा
हम शैख़ ना लीडर ना मुसाहिब ना सहाफी
जो खुद नहीं करते वो हिदायत ना करेंगे
तेरे बगैर ही अच्छे थे क्या मुसीबत है।
ये कैसा प्यार है हर दिन जताना पड़ता है।।
बैठा था आस्तीन में वो साँप की तरह...
हम दिल के आसपास जिसे ढूँढ़ते रहे।।
अक़्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती है
इश्क़ बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला न हकीम
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
तेरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
बात का ज़ख़्म है तलवार के ज़ख़्मों से सिवा
कीजिए क़त्ल मगर मुँह से कुछ इरशाद न हो !!
खूब पछताया मैं उसे अपनी जरूरत बताकर
बडा बेआबरू किया उसने मुझे अफ़सोस जताकर
हम से मिलते थे तो मुहं भी ना धोते थे...
अब जो तुम रोज नहाते हो कहा जाते हो..
[चमन में इख्लाते रंग ओ बू से बात बनती है।
तुम हो तो क्या तुम हो ,हम हें तो क्या हम हैं।
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग
हम लोग भी फ़क़ीर इसी सिलसिले के हैं
[सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती
इबादत बर्क़ की करता हूँ और अफ़्सोस हासिल का
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दो
फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे
बुत को यूँ पूज रहे हैं कि ख़ुदा हो जैसे
यही है इबादत यही दीन ओ ईमाँ
कि काम आए दुनिया में इंसाँ के इंसाँ
हमें जब जान प्यारी थी तो दुश्मन भी हज़ारो थे।
चढ़ा है शौक़ मरने का तो अब क़ातिल नहीं मिलता।
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है!
अब ऐसी जगह चलकर जहां कोई ना हो,
हमसुखन कोई ना हो और हमजुबां कोई ना हो...
दिलों में उदासी बुझे से ये चेहरे
कि रंज-ओ-अमल की है मारी ये दुनिया.
न रहना किसी ने यही पर हमेशा
कि है इक सफ़र पे हमारी ये दुनिया..
दयार-ए-इश्क में अपना मकाम पैदा कर,
नया ज़माना नई सुबह-ओ-शाम पैदा कर।
तेरे सीने में दम है दिल नहीं है !
तेरा दम गर्मी-ए-महफ़िल नहीं है !
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है!
मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ हूँ
जहाँ में हूँ कि ख़ुद सारा जहाँ हूँ
वो अपनी ला-मकानी में रहें मस्त
मुझे इतना बता दें मैं कहाँ हूँ
शैख़ साहिब भी तो पर्दे के कोई हामी नहीं
मुफ़्त में कॉलेज के लड़के उन से बद-ज़न हो गए
वा'ज़ में फ़रमा दिया कल आप ने ये साफ़ साफ़
पर्दा आख़िर किस से हो जब मर्द ही ज़न हो गए
मन्नत के धागे की तरह मिला हैं कोई!
रब करें ये गाँठे ता-उम्र बंधी रहे!!
इश्क़ तो__नीयत की सच्चाई देखता है।
दिल ना झुके तो सजदे जाया मत करना।
शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास
सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास
तुम्हारा गुस्सा होना तो जायज़ था,
हमारी आदत छूट गयी मनाने की..
शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की
शुक्र है ज़िंदगी तबाह न की!
ज़हर से धो लिए हैं होंट अपने
लुत्फ़-ए-साक़ी ने जब कमी की है
अब "और" भी हैं "जिंदगी" में "किरदार" मेरे,
"समय" बदल गया तो "क्या", हैं तो "मेरे" ही "चेहरे"..!
नहीं मिला कोई तुझसा आज तक
फिर ये सितम अलग है के तू भी नहीं मिला
न कद्र ,न अदब ,न रहम ,न मेहरबानी ,
फिर भी वो कहते हैं ,बेशुमार इश्क़ है तुमसे.
हम सजाते हैं तुम्हें रूह के अशआरों में ;
तुम कल भी पढ़े जाओगे इश्क की किताबों में।
मेरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने
किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें
Thank you..